पुलिस-वाले भी
अजीब होते हैं
थोड़े चोर
और बड़े बेशरम
बड़ी बेशर्मी से थोड़ा चुराते है
पाकिट काटते तो नहीं
पर पाकिट मारते ज़रूर हैं
- जन-सेवार्थ।
अपने कंधो पर
बडे शान से पहनते हैं ये सितारे और पट्टियां
और कभी-कभार
तमगे भी
जो की अक्सर
झूठी रिपोर्टों के एवज
इन्हें भेंट किये जाते हैं
और भी काफ़ी भेंटे
लेते और देते हैं ये
टेंपो-वालो से चंदे
रिक्शा-वालो को डंडे
दारु-वालो से निप
मोटर-वालो से टिप
कमजोरों को गालियाँ
अपने घरवालो से तालियाँ
ऐसे ही एक पुलिसवाले है
हमारी तरफ़
बहुत फख्र है उन्हें
की बंगलादेश से भाग कर
उन्होंने इस अनजान देश मे
अपना डंडा चमकाया है
हवलदार से दारोगा तक
बहुत दूर आए हैं
जुर्म की दुनिया मे
खूब कमाया
इधर-उधर कर
पूरा परिवार चलाया
रीटायरमेन्ट मे कुछ महीने बचे हैं
फिर भी चलते रहना चाहते हैं
बस छोटीवाली का ब्याह हो जाए
भेंट के आदान-प्रदान में
लाइन-हाजिर हो गए हैं
और
भेंट देकर पुनः किसी
मोटी जगह जाना चाहते हैं
जहाँ मोटी भेंट मिलेगी
संयोग है
कि भेंट कि अर्थव्यवस्था
थोडी चरमरा सी गयी है आजकल
और उनके अफसरान
उनसे भेंट नही कर पाते है
वरना ना जाने ये
कितनी भेंटे और लपेटते
भेंटो से भी भला पेट भरता है कभी.
Thursday, November 22, 2007
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