दर्द की बात करें तो
दर्द में भी एक बात है
दर्द ना हो तो
हमदर्दी भी नही रहेगी
मानवता के अनेकों
अलग-थलग पड़े ब्रह्मांडों
के बीच का पुल भी
मिट जायेगा
दर्द के जाने का सुकून भी
नहीं रहेगा
फिर क्या मज़ा आएगा ?
दर्द का अस्तित्व
इसकी सत्ता को
आधार देता है -
दर्द है इसीलिए
यह सर्वोपरि है .
कहा जाए तो
दर्द ही अस्तित्व का
आधार है .
एक छोटा सा टुकडा
एक पतली सी नली से
निकलने की
कोशिश करता है
अब अगर दर्द ना हो
तब कैसी नली
और कैसा टुकडा
कौन यह जानना चाहेगा
कि दूध में भी
विष है
कि पालक से भी
खतरा है
कि मूत्र-विसर्जन
की भी अपनी एक
कला हो सकती है
की बचपन से सुनी
बडों की वह बात
कि दर्द के रिश्ते
बडे गहरे होते हैं
में वाकई सच है
एक दर्द ने फिर
यह अहसास दिलाया .
दर्दोपरांत मिली सहानुभूतियाँ
दर्द की एकसमग्रता नहीं तो क्या हैं ?
Friday, January 4, 2008
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