मैं पक गया हूँ
मैं थक गया हूँ
हाँ, मैं सटक गया हूँ
मुझे क्षोभ है
उन सभी
समझ के ठेकेदार हरामियों से
जिन्हें मेरी घुटी कुंठाओं
का मोल नहीं है।
दिल और दिमाग से
बिक़े हुए
क्या कभी समझ पाएंगे
अपनी जमीं पर
अपना हक़ पाने का जूनून।
क्या वो कभी समझेंगे
कि कायरता
एक प्रदर्शन में
पुलिस के चंद डंडे खाने भर से
नहीं ढल जाती।
सहस्त्राब्दियों के अपमान
के विरोध की
हर आवाज़ को दबाने
का हर बौद्धिक प्रयत्न
उन्हें बस छोटा करता है।
और, मैं तंग आ गया हूँ
छोटे-छोटे इन कीड़ों के बीच
जुगाली करते।
ये मेरी जमीं है
और, नहीं,
तुम्हारा कोई अधिकार नहीं इसपर।
अपनी संवेदना कहीं और दिखाओ
जाओ, तुम कहीं और गाओ
जाओ, कहीं और बजाओ
किसी और को सुनाओ।
नहीं चाहिए तुम्हारा ज्ञान
तुम्हारा अभिमान
तुम्हारे कीर्तिमान।
तुम्हारी क्रान्ति बेमानी है
क्योकि उसने
मुझसे हठ ठानी है।
तुम उखड़ोगे
क्योकि मुझे बसना है
और, तुम्हें ठोक कर
मुझे हंसना है।
मैं थक गया हूँ
हाँ, मैं सटक गया हूँ
मुझे क्षोभ है
उन सभी
समझ के ठेकेदार हरामियों से
जिन्हें मेरी घुटी कुंठाओं
का मोल नहीं है।
दिल और दिमाग से
बिक़े हुए
क्या कभी समझ पाएंगे
अपनी जमीं पर
अपना हक़ पाने का जूनून।
क्या वो कभी समझेंगे
कि कायरता
एक प्रदर्शन में
पुलिस के चंद डंडे खाने भर से
नहीं ढल जाती।
सहस्त्राब्दियों के अपमान
के विरोध की
हर आवाज़ को दबाने
का हर बौद्धिक प्रयत्न
उन्हें बस छोटा करता है।
और, मैं तंग आ गया हूँ
छोटे-छोटे इन कीड़ों के बीच
जुगाली करते।
ये मेरी जमीं है
और, नहीं,
तुम्हारा कोई अधिकार नहीं इसपर।
अपनी संवेदना कहीं और दिखाओ
जाओ, तुम कहीं और गाओ
जाओ, कहीं और बजाओ
किसी और को सुनाओ।
नहीं चाहिए तुम्हारा ज्ञान
तुम्हारा अभिमान
तुम्हारे कीर्तिमान।
तुम्हारी क्रान्ति बेमानी है
क्योकि उसने
मुझसे हठ ठानी है।
तुम उखड़ोगे
क्योकि मुझे बसना है
और, तुम्हें ठोक कर
मुझे हंसना है।