पडोसी देश में
माहौल गरम है
एक बहुत बड़ा खून हुआ है
एक बड़ी नेत्री
शहीद हो गयी हैं
खानदानी आदत सी थी।
उनकी शहादत ने
हिला दिया है
सबको
महासागरों के
उस पार से
इस पार तक ।
अटकलों का बाज़ार
ज़बरदस्त गरम है
आदतानुसार ।
आतंकवादियों से लेकर
सत्ता के ठेकेदारों तक
सब पर उंगलियाँ
उठ रही हैं
काले बाज़ारों में
सट्टे लग रहे हैं -
मौत गोली से हुयी या
सदमे से
गोली लगी तो
चलायी किसने
आदि सवाल
जैसा कि
ऐसी शहादतों में
अक्सर होता है ।
जनता पागल हो गयी है -
आगजनी और तोड़फोड़
भी होता ही है ऐसे मे
जोश में होश खोना
तो बखूबी आता है आवाम को
पुरानी आदत है भीड़ की ।
भूलने की भी तो
पुरानी आदत ही है
और भला
'पुरानी आदतें ऐसे ही
थोडे जाती हैं । '
मुहावरों का भी कुछ
औचित्य तो रहता ही है
जैसे,
'जब बोया पेड़ बबूल का
आम कहाँ से खाए'
या फिर,
'मियाँ की जूती
मियाँ के सर पर'।
सांप तो
बरसों पीये दूध का कमाल
दिखायेगा ही।
Sunday, December 30, 2007
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