एक रात सपने में देखा
कि मैं भूत बन गया हूँ
स्याह अँधेरे में
लहराता हुआ
एक पेड़ से दुसरे पेड़
चक्कर काट रहा था
ना बिजली के तारों से
सटने का डर
ना जमीं से हटने का डर।
पत्तों के जाल से
इधर उधर करते हुए
अठखेलिया मनाते
नजर पड़ी
सामने महल की खिड़की पर।
दरारों से निकलती
पैनी रौशनी में मैंने तुम्हें देखा
और आँख खुल गयी
पसीना - पसीना मैंने महसूस किया
तुमसे बिछड़ने का डर।
कि मैं भूत बन गया हूँ
स्याह अँधेरे में
लहराता हुआ
एक पेड़ से दुसरे पेड़
चक्कर काट रहा था
ना बिजली के तारों से
सटने का डर
ना जमीं से हटने का डर।
पत्तों के जाल से
इधर उधर करते हुए
अठखेलिया मनाते
नजर पड़ी
सामने महल की खिड़की पर।
दरारों से निकलती
पैनी रौशनी में मैंने तुम्हें देखा
और आँख खुल गयी
पसीना - पसीना मैंने महसूस किया
तुमसे बिछड़ने का डर।