जो बीत गया
क्या साल रहा
एक जीवन में
एक दिशा मिली
एक दशा गया
नए सपनों का
निर्माण हुआ
कुछ जाने दुर्गम
पंथों पर
पैदल चलना
आसान हुआ ।
घरवाले डरे
शुभचिंतक बिगड़े
पर दिल अपनी ही
राह चला
निर्वासित जीवन
से उबकर
अपनों के
संग को
वो मचला।
दिल एक
नहीं था
ऐसे में
मन का भी
ऐसा ही
हाल हुआ
एक असफल विपस्सना
के पश्चात्
ज्ञान का यूँ
संचार हुआ
सब ढेर हुए
उसके अड़चन
नयी जागृति का
अहसास हुआ
जीवन की
गहमा-गहमी में
कर्तव्य-बोध का
भाष हुआ -
एक सुदूर गाँव की
गलियों और
घर में रौशन
चिराग हुआ
आजादी के
छः दशकों बाद
'तमकुहा' तम से
आजाद हुआ ।
क्या खूब गया
जो बीत गया ...
* तमकुहा एक गाँव है जिसके निवासियों को अगस्त १५, २००७ को पहली बार बिजली नसीब हुई
1 comment:
हूँ, ज्ञानेश भाई, आपसे बातें करने के बाद आज आपके ब्लॉग को पढने का मौका मिला. एक जागरूक नागरिक की ईमानदार छटपटाती अभिव्यक्ति...आपकी कविता के माध्यम से आपके जीवन, आपके संघर्ष और आपकी आशाओं को जानकर अच्छा लगा. एक शिकायत है आपसे की वर्ष 2008 के बाद आपने भूले से भी ब्लॉग का रुख नही किया. मैं तो कहूँगा की अपने ब्लॉग को वक़्त दीजिये और कुछ समय बाद अपने अनुभवों को एक किताब की शक्ल दीजिये. हम लोगों की शुभकामनाएँ हमेशा आपके साथ है.
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