बीते दिनों
इधर एक नाटक हुआ
पूरे शहर का
मंच बनाया गया
और सडकों के किनारे
दर्शकों को दूर रखने को
टेढी मेढ़ी
बल्लियाँ लगा दी गयी
बडे बडे
तोरण-द्वार लगाए गए
लंबे चौड़े
बोर्डों पर प्रचार हुआ ।
सबसे पहले
बहुत बड़ा हुजूम लेकर
एक कठपुतली आयीं
उन्हें राष्ट्रपति कहा गया
शेष किरदारों ने
सलामी दी
कठपुतली ने
हाथ जोड़ कर
ऐसे संवाद बोले
जिसे सिर्फ़ कलाकार ही सुन पाये
बाकी सब को
सड़कों पर
जहाँ तहां रोक कर
एक अलग तमाशा बनाया गया
जिसे किसी कलाकार ने
नहीं सुना
कठपुतली के जाते ही
एक दूर देश का
पुतला आया
जिसके पुरखों ने
सदियों पहले
यहाँ पर फांकापरस्ती किया था
उसने इधर की भाषा में
संवाद कहा
और कलाकारों का समूह
मदमस्त होकर झूमा
सारे पत्रकारों ने
पूरे खेल को
बहुत तन्मयता से
देखा और समझा
और जम के अपनी कलम तोड़ी
सुरक्षाकर्मियों ने भी
कलाकारी दिखाई
बड़ी सजगता से
ताल ठोक ठोक कर
ऐसा समां बंधा
कि सब बेखबर लगे रहे
तमाशबीनों का क्या था
वो बाहर लड़ते मरते
धक्के खाते रहे
पटाक्षेप का इंतज़ार
करते रहे
ऐसा भी कही हुआ है
कि दर्शकाधिकारों के लिए
कभी कोई नाटक रुका हो .
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