यह घोड़ा भी एक जानवर है
वही घिसा-पिटा सामाजिक वाला
दौड़ता है
लेकिन
लंबी दूरी नही तय कर पाता
'कम' में ही संतुष्ट
और कमतर प्रयास
वह सिर्फ जीता है
बिना आधार
कभी इधर
कभी उधर
कभी इधर-उधर
'जहा कहीं
हो संत समागम
लगे वहीं घोड़े का आसन'
यह घोड़ा
आम घोडों से अलग है।
कभी
किसी घोड़े के पीछे ऊँगली करके तो देखो
यह घोड़ा दुल्लत्ती नहीं मारता
सिर्फ हिनहिनाता है
सहता है
अपनी बेबसी
को नए आयाम देता है
'कम' और 'कर्म'
के बीच के
अर्ध-व्यंजन को यह कुछ नही समझता है
अपनी जड़ता बरकरार रखता है
'कम' में पूरा विश्वास करता है
'कमी' कि सत्ता
के अधीन रहता है
खुद को
'कमयोगी' कहता है.
Tuesday, November 13, 2007
Monday, November 12, 2007
एक रिक्शावाला
किसमें है दम -
मेले के रेलमपेल में
या
मलमास की सरल शांति में.
किसके आतुर रहते हो तुम -
जगजगाती ठसाठस
यात्रियों की लम्बी लाईन
या
हवालदार के डंडे से दूर
एक मार्ग सुगम.
कब रहता है
तुम्हारी धमनियों में
दबाव चरम पर
कब होता है
मस्तिष्क का उबाल
नरम-तर.
सच बताओ,
कब आता है मजा...
बिना ठिठके
उसने पीछे देखा
गली से निकले एक कुत्ते से बचा
और खखार कर कुछ यूँ कहा-
साहब, यह तो नूतन और सनातन की लड़ाई है
मरी-मरी इन सडको के पृष्ठ पर
जब सपने चमकते हैं
तो किसे मजा नही आता है.
मोटरों से टक्कर, और
उसके बाद का थप्पड़ है
तो उन सबके बाद की इंग्लिश बोतल भी है.
और दूसरी तरफ़
एक नियमितता है
हर दिन जाना-पहचाना
सवारियों के इंतज़ार में
दम भरने की फुरसत
और लंबे रास्तों के बाद
चिलम का मीठा दम भी है.
माना,
कभी-कभी गीले भात से ही
संतोष करना पड़ता है
पर साहब,
रोज-रोज इंग्लिश बोतल भी तो सही नहीं.
मेले के रेलमपेल में
या
मलमास की सरल शांति में.
किसके आतुर रहते हो तुम -
जगजगाती ठसाठस
यात्रियों की लम्बी लाईन
या
हवालदार के डंडे से दूर
एक मार्ग सुगम.
कब रहता है
तुम्हारी धमनियों में
दबाव चरम पर
कब होता है
मस्तिष्क का उबाल
नरम-तर.
सच बताओ,
कब आता है मजा...
बिना ठिठके
उसने पीछे देखा
गली से निकले एक कुत्ते से बचा
और खखार कर कुछ यूँ कहा-
साहब, यह तो नूतन और सनातन की लड़ाई है
मरी-मरी इन सडको के पृष्ठ पर
जब सपने चमकते हैं
तो किसे मजा नही आता है.
मोटरों से टक्कर, और
उसके बाद का थप्पड़ है
तो उन सबके बाद की इंग्लिश बोतल भी है.
और दूसरी तरफ़
एक नियमितता है
हर दिन जाना-पहचाना
सवारियों के इंतज़ार में
दम भरने की फुरसत
और लंबे रास्तों के बाद
चिलम का मीठा दम भी है.
माना,
कभी-कभी गीले भात से ही
संतोष करना पड़ता है
पर साहब,
रोज-रोज इंग्लिश बोतल भी तो सही नहीं.
Subscribe to:
Posts (Atom)