एक प्यार निराला
सबसे आला
बोला सर उठाए -
'हमसे बड़का केहू नाही
हम हूँ सबसे प्यारा ।
हम हूँ गुरु प्रति
सम्पूर्ण समर्पण
हम हूँ ज्ञान को
कृतज्ञ अर्पण
जनेंद्रियों से
ऊपर उठकर
ज्ञानेन्द्रिय का
उत्कार हम हूँ
हम में कछु
कलुषित नाही।
डुगडुगी बजा कर
ज्ञान गणित के
जब मास्साब ने
अन्धकार भगाया
प्रकाश के साथ
मानस मंदिर में
एक नटखट हलचल
भी आया ।
उत्पात मचाये
ध्यान बन्टाये
लाख समझाए
वह ना माने
वह था अंश हमारा .
जिस गणित से
डरती थी वह
आतुर थी अब
उसी को लेकर
लेकिन प्रकोप
हमरा ऐसा कि
मन में बसी थी
बस एक पिक्चर -
वह बकरी-दाढी वाला .
वह गणित का
ज्ञाता हीरो
जमता है क्या
सर मुंडवा के
और सर के सर पे
वह काला तिल
हमरी तेज में
दे बैठी दिल
वह कोमल चंचल बाला. '
सपनो में बेखबर
है वो हर दिन
ज़ल्द आएंगे
इम्तहान के दुर्दिन
तेज हैं अभी
गुरु-आसक्ति की लहरें
उन लहरों में
भोला दिल उबले
अध्ययन कक्ष में
शायरी बरसे
ज्ञान के कोने
ध्यान को तरसें
ऐसा है उसका हाल.
प्यार तो प्यार से
फेल करावायगा
डैडी का रौद्र
रूप दिखायेगा
बचपन के सपने को
आहत करेगा
ना मिलेगी शिक्षा
ना मिलेंगे पिया
जब तक डीन्गू
खुमारी उतरेगी
हो जायेगी
काफी लेट
एहसास होगा
तब जाकर जब
चढा दी जायेगी
किसी अन्य को भेंट .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment