किसानों के परिवेश
से पनपे होने
पर भी
मैंने परसों तक
एक बहुत अच्छे किसान को
कभी नहीं देखा था।
परसों जो दिखें
जिनके सानिध्य
का कल लाभ मिला
वो तो विरले
ही थे ।
अच्छे किसान
यहाँ कहाँ होते हैं ।
भूख, गरीबी, बिमारी
बाढ़, सूखा, पैंतरें सरकारी
अशिक्षा, ऋण, चोरी-चुहाड़ीआदि संयतियों
के बोझ से दबे
किसानों के पास
अच्छाई
रह कहाँ पाती है
ऊपर से कोसने को
इतने सारे मुर्गे -
प्रकृति, सरकार, गाँव का चमार
कामचोरी तो
सहसा ही आ जाती है।
ऐसे मे मीनू महतो
से भेंट एक सुखद
अनुभूति थी।
हिन्दी से स्नातक
मीनू को
सब पता है -
कविता के जन्म से लेकर
द्रव्यों के विज्ञान तक
सब्जियों से लेकर
बड़े-बड़े पेड़ उगाने के तरीके
बड़े अफ्सरान से
बात करने का लहजा
जनता की समझ
का अंदाज़
सब मीनू के व्यक्तित्व
में सहज आ जाता है ।
मीनू एक महान आविष्कारक हैं
दशवें में अर्जित ज्ञान को
भला कितने
एक कार्यशील जुगाड़
का जामा पहना पाते हैं ?
द्रव्य की सरलता
के मामूली एहसास को
लिफ्ट-सिंचाई के यन्त्र
में परिमूर्तित करना
भला कितने खेतिहरों
को चमका होगा ?
मीनू जी ने किया ।
आजकल मीनू
चक्कर काट रहे हैं कि
नक्सालियों से प्रभावित
जनजातियों के
घरों में
रौशनी हो
हरित उर्जा का विकास हो
दूर-दराज के
बदनसीबों को भी
नजदीकी का एहसास हो
उन्हें क्या
वह तो एक
सच्चे कर्मयोगी हैं
बस इतने में ही
मजा आ जाएगा ।
बहुत ना रहते हुए भी
अर्थ-विचार से परे
कर्म कि अवस्था में
आनंद की अनुभूति
खोजने वाले
लोचर गाँव के
किसान मुनि मीनू जी
तुम्हें शत-शत नमन ।
से पनपे होने
पर भी
मैंने परसों तक
एक बहुत अच्छे किसान को
कभी नहीं देखा था।
परसों जो दिखें
जिनके सानिध्य
का कल लाभ मिला
वो तो विरले
ही थे ।
अच्छे किसान
यहाँ कहाँ होते हैं ।
भूख, गरीबी, बिमारी
बाढ़, सूखा, पैंतरें सरकारी
अशिक्षा, ऋण, चोरी-चुहाड़ीआदि संयतियों
के बोझ से दबे
किसानों के पास
अच्छाई
रह कहाँ पाती है
ऊपर से कोसने को
इतने सारे मुर्गे -
प्रकृति, सरकार, गाँव का चमार
कामचोरी तो
सहसा ही आ जाती है।
ऐसे मे मीनू महतो
से भेंट एक सुखद
अनुभूति थी।
हिन्दी से स्नातक
मीनू को
सब पता है -
कविता के जन्म से लेकर
द्रव्यों के विज्ञान तक
सब्जियों से लेकर
बड़े-बड़े पेड़ उगाने के तरीके
बड़े अफ्सरान से
बात करने का लहजा
जनता की समझ
का अंदाज़
सब मीनू के व्यक्तित्व
में सहज आ जाता है ।
मीनू एक महान आविष्कारक हैं
दशवें में अर्जित ज्ञान को
भला कितने
एक कार्यशील जुगाड़
का जामा पहना पाते हैं ?
द्रव्य की सरलता
के मामूली एहसास को
लिफ्ट-सिंचाई के यन्त्र
में परिमूर्तित करना
भला कितने खेतिहरों
को चमका होगा ?
मीनू जी ने किया ।
आजकल मीनू
चक्कर काट रहे हैं कि
नक्सालियों से प्रभावित
जनजातियों के
घरों में
रौशनी हो
हरित उर्जा का विकास हो
दूर-दराज के
बदनसीबों को भी
नजदीकी का एहसास हो
उन्हें क्या
वह तो एक
सच्चे कर्मयोगी हैं
बस इतने में ही
मजा आ जाएगा ।
बहुत ना रहते हुए भी
अर्थ-विचार से परे
कर्म कि अवस्था में
आनंद की अनुभूति
खोजने वाले
लोचर गाँव के
किसान मुनि मीनू जी
तुम्हें शत-शत नमन ।
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