Monday, November 12, 2007

एक रिक्शावाला

किसमें है दम -
मेले के रेलमपेल में
या
मलमास की सरल शांति में.
किसके आतुर रहते हो तुम -
जगजगाती ठसाठस
यात्रियों की लम्बी लाईन
या
हवालदार के डंडे से दूर
एक मार्ग सुगम.
कब रहता है
तुम्हारी धमनियों में
दबाव चरम पर
कब होता है
मस्तिष्क का उबाल
नरम-तर.
सच बताओ,
कब आता है मजा...

बिना ठिठके
उसने पीछे देखा
गली से निकले एक कुत्ते से बचा
और खखार कर कुछ यूँ कहा-
साहब, यह तो नूतन और सनातन की लड़ाई है
मरी-मरी इन सडको के पृष्ठ पर
जब सपने चमकते हैं
तो किसे मजा नही आता है.
मोटरों से टक्कर, और
उसके बाद का थप्पड़ है
तो उन सबके बाद की इंग्लिश बोतल भी है.
और दूसरी तरफ़
एक नियमितता है
हर दिन जाना-पहचाना
सवारियों के इंतज़ार में
दम भरने की फुरसत
और लंबे रास्तों के बाद
चिलम का मीठा दम भी है.
माना,
कभी-कभी गीले भात से ही
संतोष करना पड़ता है
पर साहब,
रोज-रोज इंग्लिश बोतल भी तो सही नहीं.