Sunday, January 13, 2008

एक लाख की कार

जमशेदजी के प्रपौत्र के पाँव
जमीन पर नही पड़ रहे
बधाईयों का तांता लगा है
देश-विदेश में खबर बनीहै
लखटकिया एक सपना सजा है
बरखुरदार बडे संतुष्ट लगते हैं
रिटायरमेन्ट की बात करते हैं
लोग-बाग़ भी बहुत खुश हैं
दो चक्कों पर सपरिवार
अपनी ज़िंदगी खीचने वाले
आशा का मधुर रस पी रहे हैं
वाह! क्या सपना सजा है ...
बडे लोगों की बड़ी-बड़ी बातें
तंग बेडौल रास्तों पे चलनेवाले
छोटे शहरों की बड़ी आबादी
कब से अपने सपने सजाने लगी
हमारे सपनों के सपने तो
रतन सरीखे रत्नों के ही हैं
नमन स्वपन-शिरोमणि
हम तमाम जामों में बैठ कर
आपके सपने का मजा लेते नही थकेंगे।