Sunday, December 30, 2007

एक नेत्री की शहादत

पडोसी देश में
माहौल गरम है
एक बहुत बड़ा खून हुआ है
एक बड़ी नेत्री
शहीद हो गयी हैं
खानदानी आदत सी थी।
उनकी शहादत ने
हिला दिया है
सबको
महासागरों के
उस पार से
इस पार तक ।
अटकलों का बाज़ार
ज़बरदस्त गरम है
आदतानुसार ।
आतंकवादियों से लेकर
सत्ता के ठेकेदारों तक
सब पर उंगलियाँ
उठ रही हैं
काले बाज़ारों में
सट्टे लग रहे हैं -
मौत गोली से हुयी या
सदमे से
गोली लगी तो
चलायी किसने
आदि सवाल
जैसा कि
ऐसी शहादतों में
अक्सर होता है ।
जनता पागल हो गयी है -
आगजनी और तोड़फोड़
भी होता ही है ऐसे मे
जोश में होश खोना
तो बखूबी आता है आवाम को
पुरानी आदत है भीड़ की ।
भूलने की भी तो
पुरानी आदत ही है
और भला
'पुरानी आदतें ऐसे ही
थोडे जाती हैं । '
मुहावरों का भी कुछ
औचित्य तो रहता ही है
जैसे,
'जब बोया पेड़ बबूल का
आम कहाँ से खाए'
या फिर,
'मियाँ की जूती
मियाँ के सर पर'।
सांप तो
बरसों पीये दूध का कमाल
दिखायेगा ही।

Thursday, December 27, 2007

एक और रिक्शावाला

एक रिक्शेवाले ने
आज रुला दिया...
शर्म से
पानी-पानी हो गया मैं।
एक हट्टे-कट्टे
रंगरूट को
एक असहाय वृद्ध के
महीनों पहले टूटी टांग से
आधे पैडल पर
धीरे-धीरे खींचते देख
भला किसका दिल
द्रवित नही होगा।
पता नहीं कितने
रंगरूटों ने
उसे देख
उसपर अफ़सोस किया होगा
आधे पैडल की
वो धीमी गति
पता नही कितने दिलों के
तह में पहुँची होगी
पता नही कितनों ने
उसे पाँच ज्यादा दिया होगा।
पर उसकी मजबूरी कि
वह अभी भी
खींच रहा था
अपनी टूटी टांग से
आधे पैडल पर
दिलदारों को।
मैं इतना खुश हूँ कि
मेरे आँसू निकले
वह अब नही खींचेगा
किसी अन्य के बोझे को।

Thursday, December 20, 2007

एक किसान

किसानों के परिवेश
से पनपे होने
पर भी
मैंने परसों तक
एक बहुत अच्छे किसान को
कभी नहीं देखा था।
परसों जो दिखें
जिनके सानिध्य
का कल लाभ मिला
वो तो विरले
ही थे ।
अच्छे किसान
यहाँ कहाँ होते हैं ।
भूख, गरीबी, बिमारी
बाढ़, सूखा, पैंतरें सरकारी
अशिक्षा, ऋण, चोरी-चुहाड़ीआदि संयतियों
के बोझ से दबे
किसानों के पास
अच्छाई
रह कहाँ पाती है
ऊपर से कोसने को
इतने सारे मुर्गे -
प्रकृति, सरकार, गाँव का चमार
कामचोरी तो
सहसा ही आ जाती है।

ऐसे मे मीनू महतो
से भेंट एक सुखद
अनुभूति थी।
हिन्दी से स्नातक
मीनू को
सब पता है -
कविता के जन्म से लेकर
द्रव्यों के विज्ञान तक
सब्जियों से लेकर
बड़े-बड़े पेड़ उगाने के तरीके
बड़े अफ्सरान से
बात करने का लहजा
जनता की समझ
का अंदाज़
सब मीनू के व्यक्तित्व
में सहज आ जाता है ।
मीनू एक महान आविष्कारक हैं
दशवें में अर्जित ज्ञान को
भला कितने
एक कार्यशील जुगाड़
का जामा पहना पाते हैं ?
द्रव्य की सरलता
के मामूली एहसास को
लिफ्ट-सिंचाई के यन्त्र
में परिमूर्तित करना
भला कितने खेतिहरों
को चमका होगा ?
मीनू जी ने किया ।
आजकल मीनू
चक्कर काट रहे हैं कि
नक्सालियों से प्रभावित
जनजातियों के
घरों में
रौशनी हो
हरित उर्जा का विकास हो
दूर-दराज के
बदनसीबों को भी
नजदीकी का एहसास हो
उन्हें क्या
वह तो एक
सच्चे कर्मयोगी हैं
बस इतने में ही
मजा आ जाएगा ।
बहुत ना रहते हुए भी
अर्थ-विचार से परे
कर्म कि अवस्था में
आनंद की अनुभूति
खोजने वाले
लोचर गाँव के
किसान मुनि मीनू जी
तुम्हें शत-शत नमन ।

Sunday, December 16, 2007

एक प्यार

एक प्यार निराला
सबसे आला
बोला सर उठाए -
'हमसे बड़का केहू नाही
हम हूँ सबसे प्यारा ।
हम हूँ गुरु प्रति
सम्पूर्ण समर्पण
हम हूँ ज्ञान को
कृतज्ञ अर्पण
जनेंद्रियों से
ऊपर उठकर
ज्ञानेन्द्रिय का
उत्कार हम हूँ
हम में कछु
कलुषित नाही।
डुगडुगी बजा कर
ज्ञान गणित के
जब मास्साब ने
अन्धकार भगाया
प्रकाश के साथ
मानस मंदिर में
एक नटखट हलचल
भी आया ।
उत्पात मचाये
ध्यान बन्टाये
लाख समझाए
वह ना माने
वह था अंश हमारा .
जिस गणित से
डरती थी वह
आतुर थी अब
उसी को लेकर
लेकिन प्रकोप
हमरा ऐसा कि
मन में बसी थी
बस एक पिक्चर -
वह बकरी-दाढी वाला .
वह गणित का
ज्ञाता हीरो
जमता है क्या
सर मुंडवा के
और सर के सर पे
वह काला तिल
हमरी तेज में
दे बैठी दिल
वह कोमल चंचल बाला. '

सपनो में बेखबर
है वो हर दिन
ज़ल्द आएंगे
इम्तहान के दुर्दिन
तेज हैं अभी
गुरु-आसक्ति की लहरें
उन लहरों में
भोला दिल उबले
अध्ययन कक्ष में
शायरी बरसे
ज्ञान के कोने
ध्यान को तरसें
ऐसा है उसका हाल.

प्यार तो प्यार से
फेल करावायगा
डैडी का रौद्र
रूप दिखायेगा
बचपन के सपने को
आहत करेगा
ना मिलेगी शिक्षा
ना मिलेंगे पिया
जब तक डीन्गू
खुमारी उतरेगी
हो जायेगी
काफी लेट
एहसास होगा
तब जाकर जब
चढा दी जायेगी
किसी अन्य को भेंट .

Thursday, December 13, 2007

एक बच्चे का खून

अखबारों में एक ताज़ा खबर
निकली है आजकल
गुडगाँव में
दो बच्चों ने
एक तीसरे का खून कर दिया।
मरा हुआ अपने आप को
बच्चा कहने मे
शायद संकोच करता रहेगा
अपनी छोटी सी दुनिया का
एक बड़ा बाहुबली जो था .
अपने घर-परिवार में उसने
बड़प्पन सीखा होगा
जिसकी लाठी उसकी भैंस
देखा होगा
रंगदारी का ज़माना है
ज़रूर समझा होगा
साथियों को ठोकना-पीटना-सताना
बहुत सरल लगा होगा
बहुत मज़ा आया होगा
दूसरे बच्चों का
बचपन चुराने में .
कौन सी बड़ी बात है कि
एकाध पीड़ित बच्चो ने
अपना बचपन दाँव पर लगा
उसका बड़प्पन छीन लिया
मुझे तो दुःख नही होता है.

Tuesday, December 11, 2007

एक तुम

तुम तो बस तुम ही हो
अपने आप को बचाने के लिए
मुझे कहाँ छोड़ोगे तुम
ऐसा भी नही की तुम्हे
कुछ खतरा हो मुझसे
मैं भला किसका
क्या बिगाड़ लूंगा
बस चंद विचार
और भावनाएँ
जिनकी अभिव्यक्ति
मैं रोक नही सकता
ठीक उसी तरह
जैसे तुम
अपनी प्रतिक्रिया नही रोक सकते
तुम्हारी भौहें
तन जाती हैं
नथुने फूल जाते हैं
भुजाएं फड़कती हैं
और जबान
बेलगाम हो जाती है
आख़िर क्यों ?
शायद डरते हो तुम
पर मैं भला
क्या बिगाड़ लूंगा
हाँ, मेरे विचार
शायद तुम्हे बदल डालें
तुम्हे तुम से
बहुत प्यार है
डरते हो तुम
की तुम बदल जाओगे
और अपने आप को
बचाने के लिए
मुझे कहाँ छोड़ोगे तुम।

Friday, December 7, 2007

एक बेरोजगार

अन्य किसी साधन के अभाव
मे भी
एक रिक्शेवाले से
एकाध रुपये के लिए
बड़ी शालीनता से झगड़ते हुए
एक बेरोजगार से
एक बार मिलना हो गया।
बातों-बातों में
उनकी हैसियत का पता चला
और कौतूहल बढ़ा -
महोदय ने अपनी बेरोजगारी
को अच्छे से
पहना था, या
बेरोजगारी उनपर
अच्छी तरह चढ़ गयी थी
यह कहना कठिन है
लेकिन
इतना तो कहूँगा ही
की वो जंच रहे थे।
वह सरल समर्पण
वह अनाच्छदित निस्तेज
वह शांत अनुग्रहण
एक पढे लिखे बेरोजार मे ही
संभव है
वैसे भी,
अनपढ़ जाहिल कहाँ
बेरोजगार रहते हैं।
वो अधेड़ स्नातकोत्तर
इस तथ्य को
बखूबी जानते थे
पर अपनी शिक्षा की
अवमानना नही कर सकते थे
शायद इसीलिए
लगभग दो दशकों की
लगभग बेकाम पढाई
के बाद भी
आशा रखते थे कि
शायद
कोरियन भाषा के
नए डिप्लोमा कोर्स
से ही उनका भला हो जाये।
तब तक बाप के खेती की
कमाई मे से
रिक्शेवालों से
एकाध रूपया बचाकर
चाय-पान चलाते रहेंगे।