Tuesday, November 13, 2007

एक घोड़ा

यह घोड़ा भी एक जानवर है
वही घिसा-पिटा सामाजिक वाला
दौड़ता है
लेकिन
लंबी दूरी नही तय कर पाता
'कम' में ही संतुष्ट
और कमतर प्रयास
वह सिर्फ जीता है
बिना आधार
कभी इधर
कभी उधर
कभी इधर-उधर
'जहा कहीं
हो संत समागम
लगे वहीं घोड़े का आसन'

यह घोड़ा
आम घोडों से अलग है।
कभी
किसी घोड़े के पीछे ऊँगली करके तो देखो
यह घोड़ा दुल्लत्ती नहीं मारता
सिर्फ हिनहिनाता है
सहता है
अपनी बेबसी
को नए आयाम देता है
'कम' और 'कर्म'
के बीच के
अर्ध-व्यंजन को यह कुछ नही समझता है
अपनी जड़ता बरकरार रखता है
'कम' में पूरा विश्वास करता है
'कमी' कि सत्ता
के अधीन रहता है
खुद को
'कमयोगी' कहता है.