Tuesday, December 11, 2007

एक तुम

तुम तो बस तुम ही हो
अपने आप को बचाने के लिए
मुझे कहाँ छोड़ोगे तुम
ऐसा भी नही की तुम्हे
कुछ खतरा हो मुझसे
मैं भला किसका
क्या बिगाड़ लूंगा
बस चंद विचार
और भावनाएँ
जिनकी अभिव्यक्ति
मैं रोक नही सकता
ठीक उसी तरह
जैसे तुम
अपनी प्रतिक्रिया नही रोक सकते
तुम्हारी भौहें
तन जाती हैं
नथुने फूल जाते हैं
भुजाएं फड़कती हैं
और जबान
बेलगाम हो जाती है
आख़िर क्यों ?
शायद डरते हो तुम
पर मैं भला
क्या बिगाड़ लूंगा
हाँ, मेरे विचार
शायद तुम्हे बदल डालें
तुम्हे तुम से
बहुत प्यार है
डरते हो तुम
की तुम बदल जाओगे
और अपने आप को
बचाने के लिए
मुझे कहाँ छोड़ोगे तुम।