Tuesday, June 4, 2013

एक विचार

सिन्धु को कब रही
संधि की दरकार ?
असीम आकाशगंगा के
असंख्य तारों में
क्या रश्मिपति खोजता है
मददगार ?
द्रष्टा वो क्या  
जिसका पंथ प्रज्जवलित
एक अन्य के उजियार ?
योग के संयोग का

क्यों संपूर्ण को हो इंतज़ार ? 

एक सीख

ज्ञान की सरिता में
नित गोता लगाने वालो –
डूबोगे.
काल की चोटी पर
सरीसृप बन उभरोगे.
क्यों न बस इतना ही जानो

कि अणु-क्षण-मुक्त है आकाश ?