हमने कैद किया है किरणों को
अपने बुलंद इरादों से
जग को हतप्रभ कराने में
बस इतना ही अब बाकी है -
हमको सूरज बन जाना है ।
Tuesday, January 4, 2011
Sunday, October 19, 2008
एक दृश्य
हिमालय की गोद में
सामने दो पहाडीयां
अनंत के सौम्य पहरेदार
धौलागिरी के चमचमाते शिखर
की ओर द्वार सा बनाती हैं
और बगल में एक झरना
मानो शिव-पथ के उत्तुंग रक्षक
को जलार्पण कर रहा हो ।
शंख-नाद करती
नीचे उबल रही
गर्त सी मैली काली-गण्डकी
- बड़े आवेग से
असंख्य दूधिया धारों को लीलती
सर पटकती दौड़ रही है ।
सामने दो पहाडीयां
अनंत के सौम्य पहरेदार
धौलागिरी के चमचमाते शिखर
की ओर द्वार सा बनाती हैं
और बगल में एक झरना
मानो शिव-पथ के उत्तुंग रक्षक
को जलार्पण कर रहा हो ।
शंख-नाद करती
नीचे उबल रही
गर्त सी मैली काली-गण्डकी
- बड़े आवेग से
असंख्य दूधिया धारों को लीलती
सर पटकती दौड़ रही है ।
Tuesday, August 26, 2008
एक प्रलय
साल भर सूखे में
जमीन से बहुत ऊपर की
राजनीति चलाने वाले
प्रांत के सबसे बड़े मंत्री जी ने
जब हवाई सर्वेक्षण में
बहुत ऊपर से
नदी का
सालाना बरसाती तांडव देखा
तो दहल से गए
समझ में नही आया
कि क्या करें क्या कहें
चिल्लाने लगे
'प्रलय आ गया प्रलय आ गया'
दस-ग्यारह महीने को
ससुराल गया था
वापस आ गया है
कुमार साहब को
बता कर गया था
साहब ने क्या किया
साहब तो अपने में व्यस्त थे
चोरी चमारी मसले सरकारी
नदियाँ तो
फैलाती सिकुड़ती रहती हैं
जनता को पता है
गणतंत्र के संविधान से
बहुत पहले से
प्रलय आता रहा है
अतिथि नहीं
तगादे को निकला
सूदखोर महाजन बन कर
दे दो उसको
जो उसका निकलता है
दिखा दो रास्ता
चला जायेगा
मुख्यमंत्री जी को
यह क्यों नही समझ आता है
अपने भय से परे
एक संकल्प क्यों नही करते
ऊपर से देख कर
कब तक बदहवास होवेंगे
थोडी जमीन तो मापें
देख लेंगे कि
इसी प्रलय में
लाखों करोड़ों मरते जीते
उन जैसे कुछ को
वोट देने के लिए
ख़ुद को बनाए रखते हैं
क्या उनका मुखिया
हर वर्ष उन्हें
सबकुछ छोड़ कर
अन्यत्र भाग जाने कि
सलाह देगा
मौत और महाजन
तो आते ही रहेंगे
उनको रास्ता तो
हमें ही दिखाना होगा
हवा से उतर कर
जमीन को पकड़ना पड़ेगा
देवेन्द्र के इस प्रलय को
काश ये मानवेन्द्र
औकार दिखा पाते
जकड देते अपने इरादों से
पकड़ लेते इसे
अपनी धमनियों में
हिला देतें
पर जनाब तो
सीधे हिल जाते हैं
एक अदनी इठलाती नदी के
बाढ़ को
एक विध्वंसकारी प्रलय बना
अपना मन और
अपनी जिम्मेदारी को
छोटा करते हैं
कितनी घटिया बात है
जमीन से बहुत ऊपर की
राजनीति चलाने वाले
प्रांत के सबसे बड़े मंत्री जी ने
जब हवाई सर्वेक्षण में
बहुत ऊपर से
नदी का
सालाना बरसाती तांडव देखा
तो दहल से गए
समझ में नही आया
कि क्या करें क्या कहें
चिल्लाने लगे
'प्रलय आ गया प्रलय आ गया'
दस-ग्यारह महीने को
ससुराल गया था
वापस आ गया है
कुमार साहब को
बता कर गया था
साहब ने क्या किया
साहब तो अपने में व्यस्त थे
चोरी चमारी मसले सरकारी
नदियाँ तो
फैलाती सिकुड़ती रहती हैं
जनता को पता है
गणतंत्र के संविधान से
बहुत पहले से
प्रलय आता रहा है
अतिथि नहीं
तगादे को निकला
सूदखोर महाजन बन कर
दे दो उसको
जो उसका निकलता है
दिखा दो रास्ता
चला जायेगा
मुख्यमंत्री जी को
यह क्यों नही समझ आता है
अपने भय से परे
एक संकल्प क्यों नही करते
ऊपर से देख कर
कब तक बदहवास होवेंगे
थोडी जमीन तो मापें
देख लेंगे कि
इसी प्रलय में
लाखों करोड़ों मरते जीते
उन जैसे कुछ को
वोट देने के लिए
ख़ुद को बनाए रखते हैं
क्या उनका मुखिया
हर वर्ष उन्हें
सबकुछ छोड़ कर
अन्यत्र भाग जाने कि
सलाह देगा
मौत और महाजन
तो आते ही रहेंगे
उनको रास्ता तो
हमें ही दिखाना होगा
हवा से उतर कर
जमीन को पकड़ना पड़ेगा
देवेन्द्र के इस प्रलय को
काश ये मानवेन्द्र
औकार दिखा पाते
जकड देते अपने इरादों से
पकड़ लेते इसे
अपनी धमनियों में
हिला देतें
पर जनाब तो
सीधे हिल जाते हैं
एक अदनी इठलाती नदी के
बाढ़ को
एक विध्वंसकारी प्रलय बना
अपना मन और
अपनी जिम्मेदारी को
छोटा करते हैं
कितनी घटिया बात है
Thursday, April 10, 2008
एक आम आदमी
एक आम आदमी
अक्सर बहुत ही आम होता है
छोटे दायरों में
छोटी छोटी जरूरतें
और उतने ही छोटे तरीकोंवाला -
एक छोटे से कर्मचारी की
छोटी सी जेब में
एक छोटा सा नोट
छोटी सी एक सुविधा के लिए
सरकाने सा एक छोटा हथकंडा
एक छोटे आदमी का ही रहा है
बड़े लोगों की बड़ी बातें
जो आम है वह तो छोटा है
जो छोटा है वह आम है
आम छोटे-छोटे काम करेगा
छोटे से कमरे में रहेगा
छोटे से संडास में हगेगा
छोटी गाड़ियों में चढ़ेगा
छोटी बोतलें खरीदेगा
छोटे अरमान गढेगा
बडे का दहेज़ ले छोटी को देगा
खूब गुणा-भाग करेगा
खाकी सफ़ेद काली
हर वर्दी से डरेगा
खूब सलामी जड़ेगा
तंत्र को मजबूत करेगा
हर अनुचित करतूत करेगा
निन्यानबे फीसदी झूठ कहेगा
हर ग्रहण पर जम के रोयेगा
बाद में उसके खूब सोयेगा
खासियत के नित स्वप्न बुनेगा
बन कर ख़ास और गिरेगा
सब के सर पे चढ़ा फिरेगा
कुर्सी पकड़ा तो नहीं हिलेगा
समय देकर भी नहीं मिलेगा
मिल गया तो भी नहीं खिलेगा
खिल गया तब तो ख़बर खोजेगा
ख़बरों में आकर ढोंग रचेगा
हाथ जोड़ कर नमन करेगा
लम्बी लम्बी बात बकेगा
अपना छोटा सा साम्राज्य रखेगा
पर ख़ुद को बिल्कुल आम कहेगा
एक आम आदमी बस आम रहेगा
अक्सर बहुत ही आम होता है
छोटे दायरों में
छोटी छोटी जरूरतें
और उतने ही छोटे तरीकोंवाला -
एक छोटे से कर्मचारी की
छोटी सी जेब में
एक छोटा सा नोट
छोटी सी एक सुविधा के लिए
सरकाने सा एक छोटा हथकंडा
एक छोटे आदमी का ही रहा है
बड़े लोगों की बड़ी बातें
जो आम है वह तो छोटा है
जो छोटा है वह आम है
आम छोटे-छोटे काम करेगा
छोटे से कमरे में रहेगा
छोटे से संडास में हगेगा
छोटी गाड़ियों में चढ़ेगा
छोटी बोतलें खरीदेगा
छोटे अरमान गढेगा
बडे का दहेज़ ले छोटी को देगा
खूब गुणा-भाग करेगा
खाकी सफ़ेद काली
हर वर्दी से डरेगा
खूब सलामी जड़ेगा
तंत्र को मजबूत करेगा
हर अनुचित करतूत करेगा
निन्यानबे फीसदी झूठ कहेगा
हर ग्रहण पर जम के रोयेगा
बाद में उसके खूब सोयेगा
खासियत के नित स्वप्न बुनेगा
बन कर ख़ास और गिरेगा
सब के सर पे चढ़ा फिरेगा
कुर्सी पकड़ा तो नहीं हिलेगा
समय देकर भी नहीं मिलेगा
मिल गया तो भी नहीं खिलेगा
खिल गया तब तो ख़बर खोजेगा
ख़बरों में आकर ढोंग रचेगा
हाथ जोड़ कर नमन करेगा
लम्बी लम्बी बात बकेगा
अपना छोटा सा साम्राज्य रखेगा
पर ख़ुद को बिल्कुल आम कहेगा
एक आम आदमी बस आम रहेगा
Monday, March 31, 2008
एक उजड़ता शांग्री-ला
इधर धरती पर
नीवें तो बढ़ रही हैं
लेकिन दुनिया की छत
लगातार ढह रही है
लाल पठारों की
दुरम्य जमीं पर भी
जमीं के सबसे शांत वाशिन्दें
अपने तरीके से
नहीं जी सकते
गलती सिर्फ़ इतनी
कि उनकी जमीं
कम्बख्त चीन से
सटी हुयी है
उनका धर्म
उनकी संस्कृति
उनके अधिकार
उनकी भक्ति
सब चीनी कृपा पर
भोला भाला दलाई
पड़ोसी की कृपा पर
सिर्फ़ जी सकता है
सबकी सहानूभूतियाँ लेता
अपनी असह्य पीड़ा को
अपनी करुणा में
छुपाता फिरता है
बाहर वाले सब
सिर्फ़ कहते हैं
चीनी चासनी में
सब घुल गए हैं
जकड गए हैं
इस चपटी चासनी
की मिठास
ऐसे सीप गयी हैं अन्दर
कि बाकी की पूरी दुनिया
एक निष्ठावान तमाशबीन
बन कर रह गयी है
हम सुनते हैं चुपचाप
जब ये माओ की नाजायज औलादें
एक संत को गाली देतीं हैं
उनके कपड़े उनके जूते
उनकी चड्ढी उनके कंडोम
उनकी गेंदें उनके बल्ले
उनकी कुर्सी उनका फ़ोन
सब तो उन्ही सालों का है
क्या बिगाड़ लेंगे उनका
उनके बम भी खतरनाक है
एक बड़ी-सी लाल सेना है
वो कंट्रोल में हैं
सब बैठे शांति से
या कभी कभी लच्छेदार
बेमानी-सी बातें करें
उनकी आंखो से
उनकी दरिंदगी का
नज़ारा ज़रा गौर से देखें
बूढे लामा की असहायता पर
दो चार आंसू भी बहा लें
उखाड़ क्या पायेंगे
साम्यवादी दरिंदों ने
पूंजीपति नक्कालों को
उनके ही खेल में
मात दे डाली है
मातम मत मनाओ दुनिया
छत से हमारे
चासनी टपक रही है
उजड़ जाए शांग्री-ला
घर अपने चीनी
रोशनी चमक रही है ।
नीवें तो बढ़ रही हैं
लेकिन दुनिया की छत
लगातार ढह रही है
लाल पठारों की
दुरम्य जमीं पर भी
जमीं के सबसे शांत वाशिन्दें
अपने तरीके से
नहीं जी सकते
गलती सिर्फ़ इतनी
कि उनकी जमीं
कम्बख्त चीन से
सटी हुयी है
उनका धर्म
उनकी संस्कृति
उनके अधिकार
उनकी भक्ति
सब चीनी कृपा पर
भोला भाला दलाई
पड़ोसी की कृपा पर
सिर्फ़ जी सकता है
सबकी सहानूभूतियाँ लेता
अपनी असह्य पीड़ा को
अपनी करुणा में
छुपाता फिरता है
बाहर वाले सब
सिर्फ़ कहते हैं
चीनी चासनी में
सब घुल गए हैं
जकड गए हैं
इस चपटी चासनी
की मिठास
ऐसे सीप गयी हैं अन्दर
कि बाकी की पूरी दुनिया
एक निष्ठावान तमाशबीन
बन कर रह गयी है
हम सुनते हैं चुपचाप
जब ये माओ की नाजायज औलादें
एक संत को गाली देतीं हैं
उनके कपड़े उनके जूते
उनकी चड्ढी उनके कंडोम
उनकी गेंदें उनके बल्ले
उनकी कुर्सी उनका फ़ोन
सब तो उन्ही सालों का है
क्या बिगाड़ लेंगे उनका
उनके बम भी खतरनाक है
एक बड़ी-सी लाल सेना है
वो कंट्रोल में हैं
सब बैठे शांति से
या कभी कभी लच्छेदार
बेमानी-सी बातें करें
उनकी आंखो से
उनकी दरिंदगी का
नज़ारा ज़रा गौर से देखें
बूढे लामा की असहायता पर
दो चार आंसू भी बहा लें
उखाड़ क्या पायेंगे
साम्यवादी दरिंदों ने
पूंजीपति नक्कालों को
उनके ही खेल में
मात दे डाली है
मातम मत मनाओ दुनिया
छत से हमारे
चासनी टपक रही है
उजड़ जाए शांग्री-ला
घर अपने चीनी
रोशनी चमक रही है ।
Monday, March 17, 2008
एक मजाक
सरकारी आंकडों को गर मानें
तो औसतन रोज सोलह बच्चे
ख़ुद को मार लेते हैं
परीक्षा के डर से
उसके तीगुने से ज़्यादा किसान
खत्म कर लेते हैं ख़ुद को
सरकारी हिसाब से
गरीबी से मर के
सिर्फ़ तीन-चार जानें जाती हैं
हर रोज कस्टडी में
गर उनकी मानें तो
चुपचाप सिहर के
गैर कानूनी गिरफ्तारियां
जरूर होती हैं हजारों में
सब जानते हैं
बिना वजह के
बस कुछ सौ रेप होते हैं
हर दिन
किसी ने अंदाजा लगाया
गुणा-भाग कर के
उसमें से हर सत्तरवां ही
रिपोर्ट लिखाते हैं
यह भी बताया कि
समाज और पुलिस के भय से
अजीब तो यह है कि
सिर्फ़ बीस फीसदी को
न्याय मिलता है
अपनी ज़िंदगी दूभर कर के
शत-प्रतिशत रिक्शे और टेम्पूवाले
हर दिन अपना आत्मसम्मान खोते हैं
मोटे मोटे हवलदारों के
गंदे डंडों से लड़ के
नब्बे प्रतिशत से ज़्यादा लोग
जो कभी काबिल हुआ करते थे
मर से जाते हैं
इस तंत्र में पड़ के ।
प्रशासनिक अधिकारी
नीति से परे राजनीतिज्ञ
न्याय की कुर्सी से चिपके जज मजिस्ट्रेट
अफसर पुलिस के -
हर किसी ने जिसने
समाज के इन दलालों को भोगा
बदल सा जाता है
अविश्वास से भर के
इस घिनौने चक्रव्यूह में फंसा
हर एक शख्श
उतना ही घिनौना बन जाता है
शायद रगड़ के
हम ये सब जानते हैं
पर कुछ नहीं करते
बैठे रहते हैं
हाथ पर हाथ धर के
आंकडे निकालते हैं
उन्हें दस बार सुधारते हैं
रिपोर्टों में सजाते हैं
जी भर के
और, व्यवस्थाओं का यह गन्दा मजाक
बेरोक चलता जाता है
खुले कमरों में
हमारे ही घर के ।
तो औसतन रोज सोलह बच्चे
ख़ुद को मार लेते हैं
परीक्षा के डर से
उसके तीगुने से ज़्यादा किसान
खत्म कर लेते हैं ख़ुद को
सरकारी हिसाब से
गरीबी से मर के
सिर्फ़ तीन-चार जानें जाती हैं
हर रोज कस्टडी में
गर उनकी मानें तो
चुपचाप सिहर के
गैर कानूनी गिरफ्तारियां
जरूर होती हैं हजारों में
सब जानते हैं
बिना वजह के
बस कुछ सौ रेप होते हैं
हर दिन
किसी ने अंदाजा लगाया
गुणा-भाग कर के
उसमें से हर सत्तरवां ही
रिपोर्ट लिखाते हैं
यह भी बताया कि
समाज और पुलिस के भय से
अजीब तो यह है कि
सिर्फ़ बीस फीसदी को
न्याय मिलता है
अपनी ज़िंदगी दूभर कर के
शत-प्रतिशत रिक्शे और टेम्पूवाले
हर दिन अपना आत्मसम्मान खोते हैं
मोटे मोटे हवलदारों के
गंदे डंडों से लड़ के
नब्बे प्रतिशत से ज़्यादा लोग
जो कभी काबिल हुआ करते थे
मर से जाते हैं
इस तंत्र में पड़ के ।
प्रशासनिक अधिकारी
नीति से परे राजनीतिज्ञ
न्याय की कुर्सी से चिपके जज मजिस्ट्रेट
अफसर पुलिस के -
हर किसी ने जिसने
समाज के इन दलालों को भोगा
बदल सा जाता है
अविश्वास से भर के
इस घिनौने चक्रव्यूह में फंसा
हर एक शख्श
उतना ही घिनौना बन जाता है
शायद रगड़ के
हम ये सब जानते हैं
पर कुछ नहीं करते
बैठे रहते हैं
हाथ पर हाथ धर के
आंकडे निकालते हैं
उन्हें दस बार सुधारते हैं
रिपोर्टों में सजाते हैं
जी भर के
और, व्यवस्थाओं का यह गन्दा मजाक
बेरोक चलता जाता है
खुले कमरों में
हमारे ही घर के ।
Wednesday, March 5, 2008
एक अजीब बात
इस अधमरे शहर में
आधे मरे भरे पड़े हैं
मुर्दों को वो जला देते हैं
जीवित को मार देते हैं
और ख़ुद जीने का
वीभत्स ढोंग रचते हैं
उनमें से हर अधमरा
तेजी से कुलबुलाता है
अन्य से नज़र मिलते ही -
जीने से ज़्यादा
एक जीवित छवि ज़रूरी है
जो कुछ भी गड़बड़ हो
ज़रा छुप के हो
बाहर और भीतर के बीच का
घटिया विरोधाभास
उनके लिए
एक घनचक्कर बन जाता है
जब कुछ करने की बारी आती है
- गाली से उनको कष्ट है
पुलिस की गाली
सह लेते हैं लेकिन
पता है ग़लत है
रह लेते हैं लेकिन
ज़िंदगी की कमजोरी
से ग्रस्त है जीवन
इसीलिए
ताक़त खोजते हैं
छोटी से छोटी जिम्मेदारी का
बड़े से बड़ा
बदइस्तेमाल खोजते हैं
वो सब सोचते हैं
ऊपर और नीचे देखते हैं
अपने अधकुचले आत्म-सम्मान को
अपने घरों में,
अपने मातहतों पर,
अपने से नीचे पडी गंदगी,
जिस किसी पर
जहाँ भी हो जाए
थोड़ा चार्ज कर लेते हैं
खीसें निपोरते आगे बढ़ते हैं
किसी और से खाते हैं
किसी और को खिलाते हैं
कहीं और दुम हिलाते हैं
हर घड़ी
एक क्रांति दबाते हैं
हर एक मौका खोते जाते हैं
हर बदलाव से डरते हैं
फिर भी घमंड करते हैं
बड़ी अजीब बात है ।
आधे मरे भरे पड़े हैं
मुर्दों को वो जला देते हैं
जीवित को मार देते हैं
और ख़ुद जीने का
वीभत्स ढोंग रचते हैं
उनमें से हर अधमरा
तेजी से कुलबुलाता है
अन्य से नज़र मिलते ही -
जीने से ज़्यादा
एक जीवित छवि ज़रूरी है
जो कुछ भी गड़बड़ हो
ज़रा छुप के हो
बाहर और भीतर के बीच का
घटिया विरोधाभास
उनके लिए
एक घनचक्कर बन जाता है
जब कुछ करने की बारी आती है
- गाली से उनको कष्ट है
पुलिस की गाली
सह लेते हैं लेकिन
पता है ग़लत है
रह लेते हैं लेकिन
ज़िंदगी की कमजोरी
से ग्रस्त है जीवन
इसीलिए
ताक़त खोजते हैं
छोटी से छोटी जिम्मेदारी का
बड़े से बड़ा
बदइस्तेमाल खोजते हैं
वो सब सोचते हैं
ऊपर और नीचे देखते हैं
अपने अधकुचले आत्म-सम्मान को
अपने घरों में,
अपने मातहतों पर,
अपने से नीचे पडी गंदगी,
जिस किसी पर
जहाँ भी हो जाए
थोड़ा चार्ज कर लेते हैं
खीसें निपोरते आगे बढ़ते हैं
किसी और से खाते हैं
किसी और को खिलाते हैं
कहीं और दुम हिलाते हैं
हर घड़ी
एक क्रांति दबाते हैं
हर एक मौका खोते जाते हैं
हर बदलाव से डरते हैं
फिर भी घमंड करते हैं
बड़ी अजीब बात है ।
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