Sunday, March 1, 2020

एक स्वप्न

एक रात सपने में देखा
कि मैं भूत बन गया हूँ
स्याह अँधेरे में
लहराता हुआ
एक पेड़ से दुसरे पेड़
चक्कर काट रहा था
ना बिजली के तारों से
सटने का डर
ना जमीं से हटने का डर।
पत्तों के जाल से
इधर उधर करते हुए
अठखेलिया मनाते
नजर पड़ी
सामने महल की खिड़की पर।
दरारों से निकलती
पैनी रौशनी में मैंने तुम्हें देखा
और आँख खुल गयी
पसीना - पसीना मैंने महसूस किया
तुमसे बिछड़ने का डर।


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